Monday, September 12, 2011

रिश्वत रानी

रिश्वत रानी

रिश्वत की रानी! धन्य तू तेरे अगणित नाम,
हक-पानी, उपहार औ, बख्शिश, घूस, इनाम।
बख्शिश, घूस, इनाम, भेंट, नजराना, पगड़ी,
तेरे कारण खाऊमल की इनकम तगड़ी।
कहं काका कविराय, दौरा-दौरा दिन दूना,
जहां नहीं तू देवी, महकमा है वह सूना।

जिनको नहीं नसीब थी टूटी-फूटी छान,
आज वहां मन्ना रही कोठी आलीशान।
कोठी आलीशान, भिनकती मुंह पर मख्खी,
उनके घर में घूम रही चांदी की चक्की।
कहं काका कवि, जो रिश्वत का हलवा खाते,
सूखे-पिचके गाल कचौड़ी से हो जाते।

(साभार: काका की फुलझड़ियां, डायमंड पॉकेट बुक्स, सर्वाधिकार सुरक्षित।)

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